छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का नियमितीकरण अब संभव

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला—20 साल से सेवा दे रहे दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का नियमितीकरण अब संभव, जानें पूरी जानकारी विस्तार से।

🔰 भूमिका

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि यह मामला क्या था, कोर्ट ने क्या कहा, इसका कानूनी आधार क्या है, और यह फैसला किस तरह से अन्य कर्मचारियों के लिए मिसाल बन सकता है।


🔍 दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का परिचय

दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी वे होते हैं जिन्हें प्रतिदिन के आधार पर वेतन दिया जाता है, न कि स्थायी पदों पर नियुक्त किया गया होता है। ये कर्मचारी सरकार या संस्थानों के लिए नियमित काम करते हैं, परंतु इन्हें न तो स्थायी कर्मी की तरह सुविधाएं मिलती हैं और न ही भविष्य की सुरक्षा।

छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हजारों कर्मचारी पिछले 10 से 20 वर्षों से औषधालय, स्कूल, पंचायत, स्वास्थ्य केंद्र, आदि स्थानों पर कार्यरत हैं। मगर इनका भविष्य हमेशा अधर में रहा है।


🧑‍⚖️ कोर्ट केस का सार

याचिकाकर्ता जगरनाथ नामक कर्मचारी पिछले 20 वर्षों से आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में औषधालय सेवक के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने यह याचिका दायर की कि:

  • वह पिछले 2 दशकों से बिना रुके काम कर रहे हैं,
  • उनके पास नियमित नियुक्ति के लिए जरूरी सभी योग्यताएं हैं,
  • 2008 में निकाले गए सरकारी सर्कुलर के तहत कई अन्य कर्मचारियों को नियमित किया गया,
  • लेकिन उन्हें उस सर्कुलर का लाभ नहीं मिला।

उन्होंने यह भी कहा कि इससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है, विशेषकर अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 15 (भेदभाव निषेध), और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के अंतर्गत।


🏛️ हाईकोर्ट का फैसला

जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की एकल पीठ ने इस मामले पर गंभीरता से विचार किया। कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया:

  • यदि कोई कर्मचारी लगातार 10 वर्षों तक सेवा करता है,
  • उसकी सेवा में कोई शिकायत या आपत्ति नहीं है,
  • तो उसके नियमितीकरण में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।

इस आधार पर कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को आदेश दिया कि:

  1. वे समान परिस्थितियों में कार्यरत अन्य कर्मचारियों के अभिलेखों का निरीक्षण करें,
  2. यदि याचिकाकर्ता का मामला भी वैसा ही पाया जाए,
  3. तो उसे भी उसी तिथि से नियमित किया जाए, जिस तिथि से अन्य को किया गया।

⚖️ सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ

इस फैसले की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट के उस पुराने निर्णय से भी होती है जिसमें कहा गया था कि:

“यदि कोई कर्मचारी लम्बे समय से सेवा दे रहा है और उसकी सेवा में कोई दोष नहीं है, तो उसे केवल इस आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता कि वह स्थायी पद पर नियुक्त नहीं था।”

यह कानूनी व्याख्या दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का नियमितीकरण की मांग को पूरी तरह से न्यायिक आधार देती है।


📋 राज्य सरकार की भूमिका

इस फैसले के बाद अब बारी छत्तीसगढ़ सरकार की है कि वह:

  • सभी संबंधित विभागों को निर्देश जारी करे,
  • दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का आंकलन करे,
  • और पात्र कर्मचारियों को जल्द से जल्द स्थायी नियुक्ति दे।

यदि सरकार इस दिशा में सक्रिय होती है, तो यह राज्य में रोजगार सुरक्षा के क्षेत्र में बड़ा कदम होगा।


✅ दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का नियमितीकरण क्यों जरूरी है?

✔️ 1. नौकरी की सुरक्षा

स्थायी पद मिलने के बाद कर्मचारी को बिना डर के काम करने का अवसर मिलता है।

✔️ 2. सामाजिक और आर्थिक स्थिरता

नियमित वेतन, पेंशन, बीमा और अन्य सरकारी लाभों से कर्मचारियों का जीवन स्तर बेहतर होता है।

✔️ 3. काम में मनोबल

जब कर्मचारी को लगे कि उसकी मेहनत को मान्यता मिल रही है, तो वह और भी निष्ठा से काम करता है।

✔️ 4. रोजगार में समानता

जब समान कार्य करने वाले दो व्यक्तियों को अलग待遇 मिलता है, तो वह सामाजिक अन्याय को जन्म देता है। कोर्ट का यह निर्णय इस भेदभाव को समाप्त करता है।


🙋‍♂️ संबंधित सवाल (FAQ)

❓1. क्या सभी दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी अब नियमित होंगे?

नहीं, केवल वे ही कर्मचारी जो योग्यताएं पूरी करते हैं और लंबे समय से सेवा में हैं, उन्हें इस फैसले का लाभ मिलेगा।

❓2. कितने वर्षों की सेवा जरूरी है?

कम से कम 10 वर्षों की बिना बाधा सेवा जरूरी मानी गई है।

❓3. क्या यह फैसला सभी विभागों पर लागू होगा?

हालांकि मामला एक स्वास्थ्य सेवा केंद्र का है, लेकिन फैसला दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का नियमितीकरण से जुड़ा है और इसलिए इसका असर अन्य विभागों पर भी पड़ सकता है।

❓4. सरकार को क्या करना होगा?

सरकार को सभी विभागों से रिपोर्ट मंगवाकर ऐसे कर्मचारियों की सूची बनानी होगी जो पात्र हैं, और उन्हें नियमित करना होगा।


📢 निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह फैसला केवल एक कर्मचारी की जीत नहीं, बल्कि दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का नियमितीकरण जैसे गंभीर मुद्दे पर न्यायपालिका की संवेदनशीलता का परिचायक है। इससे हजारों कर्मचारियों को उम्मीद की किरण मिली है।

अब आवश्यकता है कि राज्य सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाए और कर्मचारियों को वह सम्मान और सुरक्षा प्रदान करे, जिसके वे वर्षों से हकदार हैं। यह न केवल उनके लिए लाभकारी होगा, बल्कि राज्य प्रशासन के लिए भी एक सशक्त और प्रेरणादायक कदम साबित होगा।

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